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सुना था कि राजनीति बहुत गन्दी चीज़ होती है अब देख भी लिया. नीतीश बाबू और लालू यादव ने हाथ मिलाकर ये साबित कर दिया कि राजनीति में न कोई स्थाई दोस्त है और न ही दुश्मन. वैसे आपस में सांप और नेवले जैसे दुश्मनी रखने वाले और एक दूसरे के लिए जहर उगलने वाले नीतीश और लालू ने हाथ मजबूरी में मिलाया है न कि अपनी इच्छा से. अपनी राजनीति की दुकान बंद होती देख ये उन्होंने अंतिम ब्रम्हास्त्र छोड़ा है. खैर ये तो वक़्त ही बताएगा की सांप और नेवले जैसी जोड़ी कब तक जमी रहेगी और क्या गुल खिलायेगी. लालू यादव ने तो लगे हाथ मुलायम जी को भी ये ही फार्मूला सुझाया है कि वो भी मायावती से हाथ मिला ले कमोबेश इन दोनो की स्थिति भी नीतीश और लालू जैसी ही है. सपा मुखिया मुलायम जी ने हाथ मिलाने के संकेत भी दिए हैं और देखते हैं कि हाथी और साइकिल का मिलाप होता है या नहीं.
इस बार के लोकसभा के चुनाव ने कई मामलो में भारतीय राजनीति के परिदृश्य को बदल कर रख दिया है. और जो पार्टी अब तक जनता को बेवकूफ बना कर सत्ता सुख लूट रही थी उन्हें राजनीति में जमे रहने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़ रहे हैं. अभी भी ये सभी राजनीतिक दल मुख्य मुद्दे से भटके हुए हैं और सत्ता में होते हुए भी न तो इनका ध्यान विकास पर हैं और न ही जनता की भलाई पर. बस अभी भी गठजोड़ कर रहे हैं शायद जनता को फिर से बेवक़ूफ़ बनाया जा सके.
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