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अब जब ये तय हो गया है कि वाराणसी लोक सभा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी होंगे तो केजरीवाल नामक भस्मासुर ने भी सर उठाया और कहा कि अगर वाराणसी की जनता चाहेगी तो वे नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ेंगे. पर कौन सी जनता, जनता ने तो उन्हें दिल्ली में भी जिताया था और जनाब मुख्यमंत्री भी बने थे पर बिना जनता कि राय लिए इस्तीफा देकर भाग खड़े हुए. केजरीवाल को देश का प्रधानमंत्री जो बनना था उन्हें लगा कि अगर वो मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे तो जनता इसे उनकी देश के लिए शहादत समझेगी.
जब आम आदमी पार्टी का उदय हुआ था तो इनका मुख्य मुद्दा था भ्रष्टाचार लेकिन अब लगता है की इनका मुख्य मुद्दा है नरेंद्र मोदी को हराना. असल में दिल्ली विधान सभा में मिली अभूतपूर्व सफलता ने इनका दिमाग ख़राब कर दिया है और सफलता इनसे हजम नहीं हुई. इस देश की जनता ने चुनाव से पूर्व ही एक पार्टी का उदय और अंत देखा है. केजरीवाल जानते है कि वो नरेंद्र मोदी को हरा नहीं सकते पर वे अपनी हार में भी अपनी जीत देख रहे हैं क्यूंकि वे आगामी दिल्ली विधान सभा चुनाव में अपनी चुनौती को जिन्दा रखना चाहते हैं.
शायद देश में ये पहला चुनाव है जब सभी विपक्षी पार्टियों ने एक आदमी के खिलाफ अपनी हार मान ली है तभी तो सभी पार्टियां वाराणसी में केजरीवाल को समर्थन देने पर विचार कर रही हैं. लेकिन क्या ये अराजक राजनीति नहीं है कि विपक्षी पार्टियों के पास कुशासन, भ्रष्टाचार, गरीबी, घोटाले कोई मुद्दा नहीं है अगर कोई मुद्दा है तो बस नरेंद्र मोदी को रोकना.
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