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केजरीवाल जी ने अंततः इस्तीफा देकर अपने आप को भगोड़ा साबित कर ही दिया. सिस्टम बदलने कि बात बहुत करते थे सिस्टम बदलने का नंबर आया तो खुद बदल गए और सिर पर पैर रखकर भाग खड़े हुए. जब आम आदमी पार्टी का उदय हुआ था तो लगा कि भारतीय राजनीति में सकारात्मक बदलाव आने वाला है और आम आदमी कि जिंदगी को छूने वाला एक नेता पैदा हुआ है. पर ये क्या ये तो भगोड़ा निकला, सपनो का सौदागर सपनो का लुटेरा निकला.
शम्भू चौधरी जी का लेख “मोदी बनाम केजरीवाल” पढ़ा उस लेख में शम्भू जी ने केजरीवाल कि तुलना महात्मा गांधी, लोकनायक जयप्रकाश जी व गीता में उपदेश देते कृष्ण जी से की है. आश्चर्य होता है मुझे लेखक की समझ पर, एक भगोड़े, अराजक, भटका हुआ इंसान, अल्प ज्ञानी की तुलना महान विद्वानो से की है. केजरीवाल व उसकी पार्टी की राजनीति नालियों, सड़क व बिजली पानी पर ही अटकी हुई है. बेशक ये सभी चीज़ें एक आम इंसान के लिए बेहद जरूरी हैं लेकिन क्या हमारी देश की अर्थव्यवस्था ऐसी है कि इन सभी सुविधांए को फ्री या सब्सिडी पर देना सम्भव है और अगर है तो कब तक. आम आदमी पार्टी के पास राष्ट्रीय स्तर का कोई मुद्दा नहीं है, आर्थिक अर्थव्यवस्था, महिला सुरक्षा, विदेश नीति, कर नीति, रोजगार नीति आदि का कोई मुद्दा नहीं है.
आम आदमी पार्टी के पास तो बस फ्री में संसाधनो को बाँटने का मुद्दा है, देश की जनता को भिखारी बना कर छोड़ेंगे ये आम आदमी पार्टी वाले और अगर गलती से कुछ दिन सत्ता में रहे तो देश को भी भिखारी बनाकर छोड़ेंगे.
जनता ने केजरीवाल जी को वोट दिया था विकास के लिए, महंगाई कम करने के लिए, महिला सुरक्षा के लिए और ये जनाब जनलोकपाल नाम का बुरका ओढ़ कर उड़न छु हो लिए. जब तक सत्ता में रहे बहुत उत्पात मचाया और अगर कहीं आने वाले लोकसभा चुनाव में कुछ सीटें जीत गए तो भगवान् ही बचाये इस देश को. (विशाल पंडित)
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